Seven Dhatu have great importance in the fundamental principles of Ayurveda. They hold the body, that is why they are called 'Dhatu' (dha = to hold). These are seven in number -धातु (आयुर्वेद)
आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्तों में सप्त धातुओं का बहुत महत्व है। इनसे शरीर का धारण होता है, इसी कारण से इन्हें 'धातु' कहा जाता है (धा = धारण करना)। ये संख्या में सात हैं -
1- Rasa :रस : प्लाज्मा
2- Rakta :रक्त : खून (ब्लड)
3- mamsa :मांस : मांसपेशियां
4- Meda :मेद : वसा (फैट)
5- asthi :अस्थि : हड्डियाँ
6- majja :मज्जा : बोनमैरो
7- shukra :शुक्र : प्रजनन संबंधी ऊतक (रिप्रोडक्टिव टिश्यू )
मनुष्य जो पदार्थ खाता है, उससे पहले द्रव स्वरूप एक सूक्ष्म सार बनता है, जो रस कहलाता है। इसका स्थान ह्वदय कहा गया है। यहाँ से यह धमनियों द्वारा सारे शरीर में फैलता है। यही रस तेज के साथ मिलकर पहले रक्त का रूप धारण करता है और तब उससे मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र आदि शेष धातुएँ बनती है।
धातुओं का निर्माण कैसे होता है
हम जो भी खाना खाते हैं वो पाचक अग्नि द्वारा पचने के बाद कई प्रक्रियाओं से गुजरते हुए इन धातुओं में बदल जाती है। आपके द्वारा खाया गया खाना आगे जाकर दो भागों में बंट जाता है : सार और मल। सार का मतलब है भोजन से मिलने वाला पोषक तत्व और उर्जा, जिससे हमारा शरीर ठीक ढंग से काम कर सके। वहीं मल से तात्पर्य है कि भोजन को पचाने के बाद जो अपशिष्ट बनता है जिसका शरीर में कोई योगदान नहीं वो मल के रुप में शरीर से बाहर निकल जाता है। भोजन का यह सार वायु की मदद से खून में पहुँचता है और फिर खून के माध्यम से यह पूरे शरीर में फैलकर धातुओं को बनाता है।
ये सारी धातुएं एक क्रम में हैं और प्रत्येक धातु अग्नि द्वारा पचने के बाद अगली धातु में परिवर्तित हो जाती है। जैसे कि जो आप खाना खाते हैं वो पाचक अग्नि द्वारा पचने के बाद सबसे पहले रस अर्थात प्लाज्मा में बदलता है। इसके बाद प्लाज्मा खून में और फिर खून से मांसपेशियां बनती है। इसी तरह यह क्रम चलता रहता है। सबसे अंत में शुक्र अर्थात प्रजनन संबंधी ऊतक जैसे कि वीर्य, शुक्राणु आदि बनते हैं। इसलिए कहा जाता है कि शरीर में पाचक अग्नि का ठीक होना बहुत ही ज़रूरी है। इन सभी धातुओं के निर्माण में रस धातु (प्लाज्मा) ही मूलभूत तत्व है। आइये प्रत्येक धातु के बारे में विस्तार से जानते हैं।
तीनों दोषों, सात धातुएं, पांच तत्व, शरीर, इन्द्रियां और मन के सारे कार्य इसी रस धातु से ही होते हैं। रस धातु का निर्माण पाचन तंत्र में होता है और फिर यह रस रक्त द्वारा पूरे शरीर में फ़ैल जाता है। दोषों में गड़बड़ी होने पर धातुओं के स्तर में भी बदलाव होने लगता है। दोष में असंतुलन धातु को प्रभावित करता है तो रोग की उत्पत्ति होती है। जिस धातु के दूषित होने से रोग की उत्पप्ति होती है वह रोग उसी धातु के नाम से जोड़कर बोला जाता है। जैसे रस धातु के दूषित होने से रसज रोग।
इस रस का मुख्य काम तृप्ति करना है। यह संतुष्टि और प्रसन्नता प्रदान करता है और अपने से अगली धातु (रक्त) का पोषण करता है।
रस धातु की वृद्धि होने पर कफ प्रकोप के सामान लक्षण प्रकट होते हैं, जैसे पाचन शक्ति की कमी, जी मिचलाना, ज्यादा लार बनना, उल्टी साँसों से जुड़े रोग और खांसी आदि।
रस धातु में बढ़ोतरी की ही तरह कमी होना भी सेहत के लिए हानिकारण है। इस एकै लक्षणों से पहचाना जा सकता है। मुंह सूखना, थकान, रूखापन, दिल में दर्द और धड़कन तेज होना, तेज साँसे चलना आदि रस धातु में कमी के लक्षण हैं।
शरीर में रस धातु की वृद्धि से कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। इनमें से प्रमुख समस्याएं निम्न हैं।
रसज रोगों के इलाज के लिए रसायन और ताकत देने वाली औषधियों का उपयोग करना फायदेमंद माना जाता है।
रक्त हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इसकी मदद से बाकी सभी अंगों को पोषण मिलता है। यह धातु रंग को निखारता है और बाकी इन्द्रियों से जो ज्ञान मिलता है वह भी रक्त के कारण ही संभव है। रक्त से आगे चलकर मांस धातु बनती है। रक्त में ही सभी धातुओं के पोषक तत्व मिले हुए होते हैं।
रक्त धातु में बढ़ोतरी होने पर त्वचा और आंखों में लालिमा दिखाई देती है।
रक्त धातु में कमी होने पर रक्त वाहिकाएँ कमजोर हो जाती हैं। इसकी कमी होने पर त्वचा की चमक फीकी पड़ जाती है और त्वचा रूखी हो जाती है। रक्त धातु की कमी होने पर रोगी को अम्लीय और ठंडी चीजें ज्यादा अच्छी लगती हैं।
शरीर में रक्त धातु के असंतुलन से कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। उनमें से कुछ प्रमुख रोग निम्न हैं।
रक्त धातु से होने वाले रोगों के लिए रक्त को शुद्ध करना, पोषण और विरेचन सबसे अच्छे उपाय है।
मांस धातु का मुख्य कार्य है लेपन अर्थात हमारी मांसपेशियों का निर्माण। जैसे किसी मकान को बनाने में सीमेंट या मिट्टी से लेप किया जाता है वैसे ही शरीर के निर्माण में मांसपेशियों का लेपन होता है। मांसपेशियों से शरीर को शक्ति मिलती है। ये शरीर के पूरे ढांचे को सुरक्षा प्रदान करता है।
शरीर में मांस धातु के बढ़ने से गर्दन, हिप्स, गालों, जांघों, टांगों, पेट, छाती आदि अंगों में मांस बढ़ने से मोटापा बढ़ जाता है। इससे शरीर में भारीपन आता है।मांस ज्यादा बढ़ जाने पर घी, तेल, वसा और चिकनाई युक्त चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा व्रत रहना, योग और एक्सरसाइज को अपनी आदतों को अपनी जीवनशैली में शामिल करें।
मांस धातु की कमी से अंगों में दुबलापन, शरीर में रूखापन, शरीर में कुछ चुभने जैसा दर्द और रक्त वाहिकाओं के कमजोर होने जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं।
मेद धातु का तात्पर्य हमारे शरीर में मौजूद वसा (फैट) से है। वसा का हमारे शरीर में महत्वपूर्ण रोल है।
इस धातु का मुख्य काम शरीर में चिकनाहट और गर्मी लाना है। यह शरीर को शक्ति, सुरक्षा, दृढ़ता और स्थिरता देता है।
शरीर में मेद धातु बढ़ जाने से गले की ग्रंथियों में बढ़ोतरी, पेट का आकार बढ़ने जैसे लक्षण नज़र आते हैं। इसके अलावा थोड़ी सी मेहनत करने पर थक जाना, स्तनों और पेट का लटकना, शरीर से दुर्गंध आना मेद धातु के मुख्य लक्षण हैं।
शरीर में मेद धातु की कमी होने पर भी कुछ लक्षण नजर आते हैं। आखें मुरझाना, बालों और कानों में रूखापन, पेट व शरीर के बाकी अंगों का पतला होना, प्लीहा में वृद्धि आदि मेद धातु की कमी के मुख्य लक्षण है। मेद धातु की कमी होने पर मांसाहारी रोगियों को वसायुक्त मांस खाने का मन करता है। ।
मेद धातु बढ़ने का सीधा मतलब है शरीर का मोटापा बढ़ना। इसके लिए आपको अपनी जीवनशैली में सही बदलाव लाकर मोटापे को कम करने के प्रयास करने चाहिए। इसके लिए व्रत रहें और योग करें। अगर मेद धातु की कमी हो गयी हो तो घी, दूध आदि वसायुक्त चीजों का सेवन करें।
हमारे शरीर का ढांचा हड्डियों से ही निर्मित होता है। इसी के आधार पर शरीर व उसके अंगों के आकार का निर्धारण होता है और शरीर खड़ा रहता है।
शरीर में अस्थि धातु के बढ़ने से हड्डियों का आकार सामान्य से अधिक मोटा और बढ़ा हुआ होने लगता है। बालों और नाखूनों में तेजी से वृद्धि, दांतों का आकार सामान्य से ज्यादा होना, हड्डियों व दांतों में दर्द, दाढ़ी-मूंछ के रोग होना आदि इसके मुख्य लक्षण हैं।
शरीर में अस्थि धातु की कमी होने पर हड्डियाँ कमजोर होने लगती हैं। हड्डियों और जोड़ों में दर्द, दांतों व नाखूनों का टूटना और रुखापन, बालों और दाढ़ी के बालों का झड़ना आदि अस्थि धातु में कमी के लक्षण हैं।
अस्थि धातु बढ़ जाने पर तिक्त द्रव्यों से तैयार बस्ति देनी चाहिए। अस्थि धातु कमजोर होने पर कैल्शियम युक्त आहार, दूध, मट्ठा, पनीर, छाछ, ड्राई फ्रूट्स का सेवन करें। इसके अलावा हड्डियों में कमजोरी होने पर ताजे फल, हरी सब्जियां, चना आदि दालों का सेवन करें। रोजाना कुछ देर धूप में टहलना भी हड्डियों के लिए फायदेमंद होता है। हड्डियों की मजबूती के लिए आप मुक्ताशुक्ति व शंखभस्म आदि भी ले सकते हैं।
मज्जा धातु का मतलब शरीर में मौजूद बोनमैरो से है। शरीर में मौजूद हड्डियों के भीतर जो खाली जगह और छिद्र होते हैं उनमें बोनमैरो भरा हुआ रहता है। बोनमैरो हड्डियों के जोड़ों के बीच चिकनाई का काम करती है और उन्हें मजबूत बनाती है।
पूरे शरीर और खासतौर पर आंखों में भारीपन और हड्डियों के जोड़ों में बड़े बड़े फोड़े फुंसियाँ होना मज्जा धातु के बढ़ने के लक्षण हैं।
शरीर में बोनमैरो की कमी होने पर मज्जायुक्त द्रव्य आहार का सेवन करना चाहिए।
इसे सबसे अंतिम, शक्तिशाली और महत्वपूर्ण धातु माना गया है। इसका सीधा संबंध हमारे शरीर में मौजूद प्रजनन संबंधी टिश्यू से है। अर्थात वो सारी चीजें जो संतान पैदा करने में मदद करती हैं शुक्र धातु के अंतर्गत आती हैं।
शुक्र धातु का मुख्य काम संतान उत्पत्ति करना है। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण, वीरता, निडरता, संभोग के समय वीर्य का निकलना आदि शुक्र धातु के कारण ही संचालित होती हैं।
शुक्र का अधिक मात्रा में स्राव, कामवासना बढ़ना और शुक्र मार्ग में पथरी होना शुक्र धातु के बढ़ने के लक्षण हैं।
शरीर में शुक्र धातु की कमी होने से कई तरह के लक्षण नजर आने लगते हैं। शरीर में कमजोरी, मुंह सूखना, एनीमिया, थकान, नपुंसकता आदि शुक्र धातु की कमी के लक्षण हैं। इसके अलावा अंडकोष में तेज दर्द, लिंग में जलन होना भी शुक्र की कमी के लक्षण हैं।
शरीर में शुक्र ज्यादा होने पर उपवास, पूजा-पाठ और संतुलित आहार का सेवन करें। शुक्र धातु की कमी होने पर शुक्र बढ़ाने वाली चाजों और मधुर रस वाली शुक्र पुष्टिकर औषधियों का सेवन करें।
सातों धातुओं की वृद्धि और कमी :