Vitamin (विटामिन )
विटामिन की कमी से होने वाले रोग का विस्तृत रूप
विटामिन ए- वृद्धि रुकना रतोधी व जीरफ्थेल्मिया , संक्रमण के प्रति प्रभाव्यता, त्वचा और झिल्लियों में परिवर्तन का आना, दोषपूर्ण दांत आदि ।
विटामिन बी 1 -- वृद्धि का रुकना ,भूख और वजन का घटना ,तंत्रिका विकास ,बेरी बेरी ,थकान का होना , बदहजमी ,पेट की खराबी आदि ।
विटामिन बी 2-- वृद्धि का रुकना , धुधली दृष्टि का होना ,जीभ पर छाले का पड़ जाना ,असमय बुढ़ापा आना ,प्रकाश ना सह पाना आदि ।
विटामिन बी 3-- जीभ का चिकनापान ,त्वचा पर फोड़े फुंसी होना,पाचन क्रिया में गड़बड़ी ,मानसिक विकारों का होना आदि ।
विटामिन बी5-- पेशियो में लकवा ,पैरो में जलन आदि ।
विटामिन बी6-- त्वचा रोग ,मस्तिष्क का ठीक से काम ना करना ,शरीर का भार कम होना, अनीमिया आदि ।
विटामिन बी7-- लकवा की शिकायत ,शरीर में दर्द , बालों का गिरना तथा वृद्धि में कमी आदि ।
विटामिन बी12-- रुधिर की कमी Normal values are 160 to 950 picograms
per milliliter (pg/mL), or 118 to 701 picomoles per liter (pmol/L).
विटामिन सी -- मसूड़े फूलना ,अस्थियों के चारो ओर श्राव , जरा सी चोट पर रुधिर निकलना (स्कर्वी),अस्थियां कमजोर होना आदि ।
विटामिन डी -- सूखा रोग (रिकेट्स),कमजोर दांत ,दातों का सड़ना आदि ।
विटामिन ई -- जनन शक्ति का कम होना ।
विटामिन K -- रुधिर का स्राव होना ,ऐंठन , हीमोफीलिया आदि ।
फोलिक एसिड -- अनीमिया तथा पेचिश रोग होता है ।
विटामिन A
शरीर में विटामिन ए की कमी न होने के लिए चुकंदर, गाजर, पनीर, दूध, टमाटर, हरी सब्जियां, पीले रंग के फल खाने चाहिए। इसमें विटामिन ए भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो शरीर में इसकी पूर्ति करता है।
विटामिन बी
विटामिन बी शरीर को जीवन शक्ति देने के लिए अति आवश्यक होता है। इस विटामिन की कमी से शरीर अनेक रोगो का घर बन जाता है। विटामिन बी के कई विभागों की खोज की जा चुकी है। ये सभी विभाग मिलकर ही विटामिन ‘बी’ कॉम्पलेक्स कहलाते हैं। हालाँकि सभी विभाग एक दूसरे के अभिन्न अंग हैं, लेकिन फिर भी सभी आपस में भिन्नता रखते हैं। विटामिन ‘बी’ कॉम्पलेक्स 120 सेंटीग्रेड तक की गर्मी सहन करने की क्षमता रखता है। उससे अधिक ताप यह सहन नहीं कर पाता और नष्ट हो जाता है। यह विटामिन पानी में घुलनशील होता है। इसके प्रमुख कार्य स्नायुओं को स्वस्थ रखना तथा भोजन के पाचन में सक्रिय योगदान देना होता है। भूख को बढ़ाकर यह शरीर को जीवन शक्ति देता है। खाया-पिया अंग लगाने में सहायता प्रदान करता है। क्षार पदार्थो के संयोग से यह बिना किसी ताप के नष्ट हो जाता है, पर अम्ल के साथ उबाले जाने पर भी नष्ट नहीं होता। विटामिन बी कॉम्प्लेक्स के स्रोतों में टमाटर, भूसी दार गेहूँ का आटा, अण्डे की जर्दी, हरी पत्तियों का साग, बादाम, अखरोट, बिना पॉलिश किया चावल, पौधों के बीज, सुपारी, नारंगी, अंगूर, दूध, ताजे सेम, ताजे मटर, दाल, जिगर, वनस्पति साग-सब्जी, आलू, मेवा, खमीर, मक्की, चना, नारियल, पिस्ता, ताजे फल, कमरकल्ला, दही, पालक, बन्दगोभी, मछली, अण्डे की सफेदी, माल्टा, चावल की भूसी, फलदार सब्जी आदि आते हैं।
स्रोत:- विटामिन बी ज्यादातर मांसाहारी पदार्थों जैसे मछली, मीट, अंडा आदि में पाया जाता है। शाकाहारी लोग इसकी आपूर्ति दूध और इससे बनने वाले उत्पादों, जमीन के अंदर उगने वाली सब्जियों आलू, गाजर, मूली में आंशिक रूप से पाया जाता है।
विटामिन सी
नारंगी विटामिन सी का उत्तम स्रोत है।विटामिन सी को एस्कोरबिक ऐसिड के नाम से भी जाना जाता है। इसे सर्वप्रथम गायोर्जी ने प्रथक किया था। यह शरीर की कोशिकाओं को बांध के रखता है। इससे शरीर के विभिन्न अंगों को आकार बनाने में मदद मिलता है। यह शरीर के ब्लड वेस्सल या खून की नसों (रक्त वाहिकाओं, blood vessels) को मजबूत बनाता है। इसके एंटीहिस्टामीन गुणवत्ता के कारण, यह सामान्य सर्दी-जुकाम में दवा का काम कर सकता है। इसके अभाव में मसूड़ों से खून बहता है, दाँत दर्द हो सकता है, दाँत ढीले हो सकते हैं या निकल सकते हैं। त्वचा या चर्म में भी चोट लगने पर अधिक खून बह सकता है, रुखरा हो सकता है। आपको भूख कम लगेगी। बहुत अधिक विटामिन के अभाव से स्कर्वी (scurvy) रोग हो सकता है। विटामिन सी की कमी से शरीर का वजन कम हो जाता है इससे शरीर के विभिन्न अंगों में, जैसे कि गुर्दे में, दिल में और अन्य जगह में, एक प्रकार का पथरी हो सकता है। यह ओक्ज़लेट क्रिस्टल (oxalate crystal) का बना होता है। इससे पेशाब में जलन या दर्द हो सकता है, या फिर पेट खराब होने से दस्त हो सकते हैं। खून में कमी या एनिमीया (anemia) हो सकता है। विटामिन सी के अच्छे स्रोत हैं – नारंगी जैसे फल या सिट्रस फ्रूट्स।
स्रोत:- – विटामिन सी खट्टे रसदार फल जैसे आंवला, नारंगी, नींबू, संतरा, बेर, कटहल, पुदीना, अंगूर, टमाटर, अमरूद, सेब, दूध, चुकंदर, चौलाई और पालक विटामिन सी के अच्छे स्रोत हैं। इसके अलावा दालों में भी विटामिन सी पाया जाता है। विटामिन के वसा में घुलनशील है, इसकी कमी से रक्त का थक्का जमना बंद हो जाता है। इसके स्त्रोत हरी सब्जियां, अंकुरित चने और फल हैं।
विटामिन डी
विटामिन डी के अन्य नाम हैं –
· विटामिन डी2 या एर्गोकैल्सिफेरॉल (Vitamin D2
or Ergocalciferol)
· विटामिन डी3 या कोलेकेल्सिफेरोल (Vitamin D3
or Cholecalciferol)
यह शरीर की हड्डीयों को बनाने और संभाल कर रखने में मदद करता है। साथ ही यह शरीर में केल्शियम (calcium) के स्तर को नियंत्रित रखता है। इसके अभाव में हड्डीयाँ कमजोर हो जाता हैे और टूट भी सकती हैं (फ्रेकचर या Fracture)। बच्चों में इस स्थिती को रिकेट्स (Rickets) कहते हैं और व्यस्क लोगों में हड्डी के मुलायम होने को ओस्टीयोमलेशिया (osteomalacia) कहते हैं। इसके अलावा, हड्डी के पतला और कमजोर होने को ओस्टीयोपोरोसिस कहते हैं। इससे शरीर के विभिन्न अंगों में, जैसे कि गुर्दे में, दिल में, खून के नसों में और अन्य जगह में, एक प्रकार का पथरी हो सकती है। यह केल्सियम (calcium) का बना होता है। इससे ब्लड प्रेशर या रक्तचाप बढ सकता है, खून में कोलेस्ट्रोल अधिक हो सकता है और दिल पर असर पर सकता है। साथ ही चक्कर आना, कमजोरी लगना और सिरदर्द हो सकता है। पेट खराब होने से दस्त भी हो सकते है। अंडे का पीला भाग (egg yolk), मछली के तेल, विटामिन डी युक्त दूध और बटर इसके अच्छे स्रोत हैं, इसके आलावा धूप सेकने से भी शरीर में शरीर में इसका निर्माण होता है।
स्रोत:-सूर्य विटामिन डी का सबसे अच्छा स्त्रोत माना जाता है। इसके अलावा दूध, अंडे, चिकन,
सोयाबीन और मछलियों में भी विटामिन डी पाया जाता है।
विटामिन ई
विटामिन ई, खून में रेड बल्ड सेल या लाल रक्त कोशिका (Red Blood Cell) को बनाने के काम आता है। इसे टोकोफ़ेरल भी कहते हैं। यह विटामिन शरीर में अनेक अंगों को सामान्य रूप में बनाये रखने में मदद करता है जैसे कि मांसपेशियां एवं अन्य टिशू या ऊत्तक। यह शरीर को ऑक्सिजन के एक नुकसानदायक रूप से बचाता है, जिसे ऑक्सिजन रेडिकल्स (oxygen radicals) कहते हैं। इस गुण को एंटीओक्सिडेंट (anti-oxidants) कहा जाता है। विटामिन ई, कोशिका के अस्तित्व बनाये रखने के लिये, उनके बाहरी कवच या सेल मेमब्रेन को बनाये रखता है। विटामिन ई, शरीर के फैटी एसिड को भी संतुलन में रखता है। समय से पहले हुये या प्रीमेच्योर नवजात शिशु (Premature infants) में, विटामिन ई की कमी से खून में कमी हो जाती है। इससे उनमें एनिमीया (anemia) हो सकता है।
स्रोत:-विटामिन ई अंडे, सूखे, मेवे, बादाम और अखरोट, सूरजमुखी के बीज, हरी पत्तेदार सब्जियां, शकरकंद, सरसों में पासा जाता है। इसके अलावा विटामिन ई वनस्पति तेल गेंहू, हरे साग, चना, जौ, खजूर, चावल के मांड़ में पाया जाता है।
कुछ आवश्यक विटामिन
विटामिन |
श्रेष्ठ स्रोत |
भूमिका |
आर. डी. ए. |
दूध, मक्खन,
गहरे हरे रंग की सब्जियां। शरीर पीले और हरे रंग के फल व सब्जियों में मौजूद पिग्मैंट कैरोटीन को भी विटामिन ‘ए’ में बदल देता है। |
यह आंख के रेटिना,
सरीखी शरीर की झिल्लियों, फ़ेफ़डों के अस्तर और पाचक-तंत्र प्रणाली के लिए आवश्यक है। |
1 मि, ग्राम. |
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थायामिन बी |
साबुत अनाज, आटा और दालें, मेवा, मटर फ़लियां |
यह कार्बोहाइड्रेट के ज्वलन को सुनिशचित करता है। |
1.0-1.4 मि. ग्राम1.0-1.4 मि. ग्राम |
राइबोफ़्लैविन बी |
यह ऊर्जा रिलीज और रख–रखाव के लिए सभी कोशिकाओं के लिए आवश्यक है। |
1.2- 1.7 |
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नियासीन |
साबुत अनाज, आटा और एनरिच्ड अन्न |
यह ऊर्जा रिलीज और रख रखाव, के लिए सभी कोशिकाओं के लिए आवश्कता होती है। |
13-19 मि. ग्रा |
पिरीडांक्सिन बी |
रक्त कोशिकाओं और तंत्रिकाओं को समुचित रुप से काम करने के लिए इसकी जरुरत होती है। |
लगभग 2 मि. ग्रा |
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पेण्टोथेनिक अम्ल |
गिरीदार फ़ल और साबुत अनाज |
ऊर्जा पैदा करने के लिए सभी कोशिकाओं को इसकी जरुरत पडती है। |
4-7 मि. ग्रा |
बायोटीन |
गिरीदार फ़ल और ताजा सब्जियां |
त्वचा और परिसंचरण-तंत्र के लिए आवश्यक है। |
100-200 मि. ग्रा |
विटामिन बी |
दूग्धशाला उत्पाद |
लाल रक्त कोशिकाओं, अस्थि मज्जा-उत्पादन के साथ-साथ तंत्रिका-तंत्र के लिए आवश्यक है। |
3 मि.ग्रा |
फ़ोलिक अम्ल |
ताजी सब्जियां |
लाल कोशिकाओं के उत्पादन के लिए आवश्यक है। |
400 मि. ग्रा |
विटामिन ‘सी’ |
हडिडयों, दांत, और ऊतकों के रख-रखाव के लिए आवश्यक है। |
60 मि, ग्रा |
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विटामिन ‘डी’ |
दुग्धशाला उत्पाद। बदन में धूप सेकने से कुछ एक विटामिन त्वचा में भी पैदा हो सकते है। |
रक्त में कैल्सियम का स्तर बनाए रखने और हडिडयों के संवर्द्ध के लिए आवश्यक है। |
5-10 मि. ग्रा |
विटामिन ‘ई’ |
वनस्पति तेल और अनेक दूसरे खाघ पदार्थ |
वसीय तत्त्वों से निपटने वाले ऊतकों तथा कोशिका झिल्ली की रचना के लिए जरुरी है। |
8-10 मि. ग्रा |
विटामिन और उनकी कमी से होने वाले रोग
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