Vata, Pitta, Kapha - these three physical defects are considered. These doshas get distorted or contaminated by abnormal diet, hence it is called 'dosha'. Other elements of the body get contaminated by these defects. These three doshas are called the pillars of the body.
वात, पित्त, कफ - ये तीन शारीरिक दोष माने गये हैं। ये दोष असामान्य आहार-विहार से विकृत या दूषित हो जाते है इसलिए इसे 'दोष' कहा जाता है। शरीरगत् अन्य धातु आदि तत्व इन्हे दोषों के द्वारा दूषित होता है। इन तीनो दोषों को शरीर का स्तम्भ कहा जाता है।
The specific place of air pervaded in the whole body is called duodenum, rectum, colon. This is the main place of arthritis diseases. The origin of the wind is from the rectum. Descending from the duodenum, air spreads in the colon, waist, thigh, leg, bones, anus, rectum.
समस्त शरीर
में व्याप्त
वायु का
विशिष्ट
स्थान
पक्वाशय,
मलाशय, स्थूलांत्र कहा
जाता है।
यह वातिक
रोगों का
प्रमुख स्थान है।
वायु की
उतपत्ति मलाशय
से है।
पक्वाशय
से वायु
उतरकर बस्ति,
कमर, जांघ,
पैर, अस्थियों,
उत्तर
गुहा, मलाशय
में फैल
जातीं हैं।
In the context of anatomy and digestion, bile is a dark green or yellow fluid that aids in digestion. It is formed in the liver of vertebrate animals. There is a continuous production of bile by the liver in the human body, which gets stored in the gall bladder. Its pH value is 7.7
शरीररचना-विज्ञान तथा पाचन के सन्दर्भ में, पित्त (Bile या gall) गहरे हरे या पीले रंग का द्रव है जो पाचन में सहायक होता है। यह कशेरुक प्राणियों के यकृत (लीवर) में बनता है। मानव के शरीर में यकृत द्वारा पित्त का सतत उत्पादन होता रहता है जो पित्ताशय में एकत्र होता रहता है। इसका pH मान 7.7 होता है
(लीवर की बायोप्सी करने पर पित्त पीले रंग में दिखायी दे रहा है)
Lubrication of the body, moistness, lubrication, binding and joining of joints, keeping the organs firm and loose, natural gravitas of the body, filling, filling and buddhi, tarpan or tarawat, filling and filling of branas, semen, strength, confirmation, enthusiasm, Forgiveness, tolerance, mental stability, persistence, knowledge, discretion, insolence etc. are common tasks.
शरीर का स्नेहन, आर्दता,
स्निग्धता,
संधियों का
बन्धन
तथा जोड़ना,
अंगों को
दृढ़ एवं
अशिथिल रखना,
शरीर का
प्राकृतिक गुरता,
भराव, पूरण
और बुद्घि,
तर्पण अथवा
तरावट, ब्रणों
का भरना
और पूरना,
वीर्यवत्ता,
बल, पुष्टि,
उत्साह,
क्षमा, सहिष्णुता, मानसिक
स्थिरता,
धृति, ज्ञान,
विवेक, अलोलुपता
आदि सामान्य कार्य
हैं।
Origin of Doshas from Panchamahabhutas
पंचमहाभूतों से दोषों की उत्पत्ति
• 1. Vayu Mahabhuta, prevalent in the universe, causes the formation of Vata dosha in the body,सृष्टि में व्याप्त वायु महाभूत से शरीरगत वात दोष की उत्पति होती है,
• 2. Pitta Dosha originates from fire,
अग्नि
से पित्त
दोष की
उत्पत्ति होती
है,
• 3. Water and earth are the origin of cough defect.
जल तथा पृथ्वी महाभूतों से कफ दोष की उत्पति होती है।
That is, the body is made of metals such as blood and feces, which support the body like a pillar. Doshas, metals, excreta remain naturally and are absorbed by the body which takes proper diet. Decay, growth, deformity of bodily organs and fluids, health-disease, are based on these dosha-dhatu malas only, although dosha-dhatu malas are the three main substances for the body, yet due to the excessive activation of Vatadi doshas in the body for physical activity. There is dominance of the Dosha class.
अर्थात शरीर रक्त
आदि धातु से
निर्मित होता
है एवं
मल शरीर
को स्तंभ
की तरह
सम्हाले हुये
हैं। दोष,
धातु, मल
प्राकृतिक रूप
से रहकर
उचित आहार-विहार करने
वाल शरीर
धारण करते
है। शरीर
की क्षय,
वृद्धि, शरीरगत्
अवयवो द्रव्यों
की विकृति,
आरोग्यता-अनारोग्यता,
इन दोष
धातु मलों
पर ही
आधारित है
यद्यपि शरीर
के लिए
दोष धातु
मल तीनों
प्रधान द्रव्य
है फिर
भी शारीरिक
क्रिया के
लिए वातादि
दोषों के
अधिक क्रियाशील
होने से
शरीर में
दोष वर्ग
की प्रधानता
रहती है।
वात दोष के पांच भेद(five types of vata dosha)
1- प्राण वात(Prana Vata)
2- समान वात(Samana Vata)
3- उदान वात(Udan Vata)
4- अपान वात(Apan Vata)
5- व्यान वात(Vyana Vata)
Prana Vayu This air is constantly in the mouth and thus it holds the prana, gives life and keeps the living being alive. With the help of this air, the food and drink goes inside. When this air is vitiated, there are hiccups, breathing and disorders related to these organs.
प्राण वायु यह वायु निरन्तर मुख में रहती है और इस प्रकार यह प्राणों को धारण करती है, जीवन प्रदान करती है और जीव को जीवित रखती है। इसी वायु की सहायता से खाया पिया अन्दर जाता है। जब यह वायु कुपित होती है तो हिचकी, श्वांस और इन अंगों से संबंधित विकार होते हैं।
Samanavayu This air, mixed with the fire that resides in the stomach and duodenum, which is called Jatharagni, digests the food and separates the excreta separately. When this air is angry then dyspepsia, diarrhoea, and vayu gola prabhriti diseases occur.
समानवायु यह वायु आमाशय और पक्वाशय में रहनें वाली अग्नि, जिसे जठराग्नि कहते हैं, से मिलकर अन्न का पाचन करती है और मलमूत्र को पृथक पृथक करती है। जब यह वायु कुपित होती है तब मन्दाग्नि, अतिसार और वायु गोला प्रभृति रोग होते हैं।
Udan Vayu Udan Vayu stays in the throat. With the power of this air man emits voice, speaks, sings songs and talks in low, medium and high voice.
उदान वायु उदान वायु गले में रहती है। इसी वायु की शक्ति से मनुष्य स्वर निकालता हैं, बोलता है, गीत गाता है और निम्न, मध्यम और उच्च स्वर में बात करता है।
Apan Vayu This air resides in the bladder and its function is to expel feces, urine, sperm, womb and menstruation. When it gets angry then there are diseases related to bladder and anus.
अपान वायु यह वायु पक्वाशय में रहती है तथा इसका कार्य मल, मूत्र, शुक्र, गर्भ और आर्तव को बाहर निकालना है। जब यह कुपित होती है तब मूत्राशय और गुदा से संबंधित रोग होते हैं।
5:- व्यान वात(Vyana Vata)
Vyan Vayu This air blows in the whole body. Due to the effect of this air, juice, blood and other life-useful elements keep flowing in the whole body. All the activities of the body and the efforts to work cannot be completed without Vyan Vayu. When it gets angry, it causes diseases of the whole body.
व्यान वायु यह वायु समस्त शरीर में धूमती है। इसी वायु के प्रभाव से रस, रक्त तथा अन्य जीवनोपयोगी तत्व सारे शरीर में बहते रहते हैं। शरीर के समस्त कार्यकलाप और कार्य करनें की चेष्टायें बिना व्यान वायु के सम्पन्न नहीं हो सकती हैं। जब यह कुपित होती है तो समस्त शरीर के रोग पैदा करती है।
पित्त दोष के पांच भेद
1- साधक पित्त (Sadhak Pitta)
2- भ्राजक पित्त (Bhrajak Pitta)
3- रंजक पित्त (Pigment bile)
4- आलोचक पित्त (Critic bile)
5- पाचक पित्त (Digestive bile)
1:-साधक पित्त(Sadhak Pitta)
Sadhaka Pitta:- The most important place in the body is the place of Sadhaka Pitta in the heart.The pitta that resides in the heart is known as Sadhkagni. He is the one who does the means of the desired desires, Acharya Dalhan has written while explaining this - The bile or liquid which is special in the heart, being the means of the four purusharths of Dharma, Artha, Kama and Moksha, it is called Sadhak Pitta. Or has been given the noun of Sadhkagni. Increases intelligence and holding power.
साधक पित्त:- शरीर में सबसे महत्वपूर्ण स्थान हृदय में साधक पित्त का स्थान है
जो पित्त ह्रदय में स्थित रहता है उसकी साधकाग्नि संज्ञा है।। वह इच्छित मनोरथो का साधन करने वाला होता है आचार्य डलहण ने इसका स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है- हृदय में जो पित्त या द्रव्य विशेष होता है, वह धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थ का साधन करने वाला होने से ,उसे साधक पित्त या साधकाग्नि की संज्ञा दी गई है ।मेधा और धारण शक्ति को बढाता है।
2:-भ्राजक पित्त(Bhrajak Pitta)
Bhrajak pitta resides in our skin.Bhrajak Pitta resides in the skin and produces radiance. All diseases and ailments of the skin are caused by the vitiation of this Pitta. This bile does the digestive work of applying paste, massage, medicine bath etc. done in the body.
भ्राजक पित हमारी त्वचा में रहता है भ्राजक पित्त यह चमडे मे रहता है और कान्ति उत्पन्न करता है। त्वचा के समस्त रोग और व्याधियां इसी पित्त की विकृति से होती हैं। शरीर मे किये गये लेप, मालिश, औषधि स्नान आदि के पाचन कार्य यही पित्त करता है।
3:- रंजक पित्त(Pigment bile)
Pigment bile This bile does the work of coloring. Due to the function of coloring the redness of the blood, the color of the skin, the color of the pupils of the eyes, it is called pigment bile. It forms blood by living in the liver and spleen.
रंजक पित्त यह पित्त
रंगनें का
कार्य करता
है। रक्त की
लाली, त्वचा का
रंग, आंखों
की पुतलियों
का रंग
रंगनें का
कार्य करनें
से इसे
रंजक पित्त कहते
हैं। यह
यकृत और
प्लीहा
में रहकर
रक्त
का र्निमाण
करता है।
4:- आलोचक पित्त(Critic bile)
This bile resides in the eyes. Appraises the objects seen by the eyes.
ये पित्त नेत्रों में निवास करता है। नेत्रों द्वारा देखी गई वस्तुओं का आकलन करता है।
5:-पाचक पित्त(Digestive bile)
Digestive bile Since this bile digests these four types of food, Bhakshya, Bhojya, Lehya and Choshya, hence it is called digestive bile. It digests food juice and destroys bad bacteria.
पाचक पित्त यह पित्त
चूंकि भक्ष्य, भोज्य, लेह्य
और चोष्य इन
चार प्रकार
के भोजनों
को पचाता
है, इसलिये
इसे पाचक
पित्त
कहते हैं।ये
अन्न रस
का पाचन
व बुरे
बैक्टीरिया का
नाश करता
है।
कफ दोष के पांच भेद
1- क्लेदन कफ (Claydon kapha)
2- अवलम्बन कफ(Dependence kapha)
3- श्लेष्मन कफ(mucous kapha)
4- रसन कफ(Rasan Kapha)
5- स्नेहन कफ(Lubrication kapha)
1:-क्लेदन कफ(Claydon kapha)
Kledak Kapha This Kapha moistens the food and stays in the stomach and separates the food
क्लेदक कफ यह कफ अन्न को गीला करता है और आमाशय में रहता है तथा अन्न को अलग अलग करता है।
2:-अवलम्बन कफ(Dependence kapha)
Dependent Kapha resides in the heart and nourishes the heart through its dependent actions.
अवलम्बन कफ यह हृदय में रहता है और अपनें अवलम्बन कर्म द्वारा हृदय का पोषण करता है।
3:-श्लेष्मन कफ(Mucous kapha)
Mucous kapha This phlegm stays in the joints and does not make these places phlegmless. Rasan Kapha: It resides in the throat and absorbs the juice. This is the knowledge of bitter and pungent juices.
श्लेष्मन कफ यह कफ सन्धियों में रहता है और इन स्थानों को कफ विहीन नहीं करता है। रसन कफ: यह कन्ठ में रहता है और रस को गृहण करता है। कड़वे और चरपरे रसों का ज्ञान इसी से होता है।
Rasan Kapha It stays in the throat and accepts the juice. This is the knowledge of bitter and pungent juices.
रसन कफ यह कन्ठ में रहता है और रस को गृहण करता है। कड़वे और चरपरे रसों का ज्ञान इसी से होता है।
5:-स्नेहन कफ(Lubrication kapha)
Snehan Kapha This Kapha resides in the head and satisfies all the senses of the body. This is the reason why all the senses are capable in their respective works.
स्नेहन कफ यह कफ मस्तक में रहता है और शरीर की समस्त इन्द्रियों को तृप्त करता है। इसी कारण समस्त इंद्रियां अपनें अपनें कामों में सामर्थ्यान होती हैं।